Monday, 29 January 2024

देश प्रेम

 


देश प्रेम


आओ, देश प्रेम पे आज बात करे

दिल के दरवाजे पे दस्तक दे दे 


देश से आई दूर तो जाना

मेरा भारत बड़ा विशाल है

सरहद की हदो से दूर

मेरा भारत हर ओर वर्तमान है

भारत - एक सोच है,

या शायद संस्कार है ।

मुझ में जीता, तुम में जीता

हम सब की सहज पहचान सा,

ज्योग्राफी की परिभाषा से ऊपर भारत 

हम सब में विद्यमान है ।


दिल टटोल के जो बात करे तो 

एक अटूट बंधन सा दिखता है,

पर दिल ये बोले मुझको अब 

Canada भी प्यारा लगता है ।

तिरंगा जहां मस्तक पे रहता,

Red n white भी खूब जचता,

हिंदी और नमस्ते की गरिमा

फ्रेंच इंग्लिश में भी दिखती hai



Fraser की धारा मुझको

गंगा सी पावन दिखती,

पेसिफिक की गुर्राती लहरें ओमकार का नाद सुनाती

हरी भरी इस वसुंधरा में

पावन पाक व फल जब उगते हैं

पंजाब के खेत खलिहान

सहज याद आ जाते हैं

Cypress की ऊंची चोटी पे 

मेरे शिवा मुझे मिलते हैं


देश देश के लोग यहां

भारत की विविधता याद दिलाते है

Multicuisine खाना मुझे

गुजरात से चेन्नई का स्मरण

कराता है

Taylor Swift ke गानों में भी

सारेगामा की धुन रमती है

बढ़ते हुए high Tech India पे

हरदम मैं इतराती हूं 

तो देख, कुदरत की मेहर यहां पे,

हर पल कृतज्ञ बन जाती 


दूर से मुझे अब भारत

इंसानों का महा सागर लगता है

क्षमता में अति बलवान,

ये कई संस्कृतियों का जन्मस्थान दिखता है

परिपेक्ष जो बदल के देखू

भारत, मां के घर सा लगता है

प्यार, अपनापन और सुकून

सांसों में भर जाता है


मुझ में जीता, तुझ में जीता

हर दिल में भारत जीता है

Canada ki सुंदर वादियों में

मेरा भारत भी धड़कता है।।


शालू मखीजा

 22nd Jan 2023


Tuesday, 23 January 2024

चैन का secret

 


चैन का secret

 

सुबह के alarm ki आवाज थी

या शेयर मार्केट के Dip ki चीख

 

कुछ भी हो दोस्तों

आंख मीच के बस

अनसुना कर दिया मैंने

 

चाय की प्याली पे

ना खैर खबर हमने ली

बाते अब नोक झोंक बन गई

बिन लड़े ही हस्ते हस्ते,

हार मान ली मैंने

 

कुछ हासिल करने की चाहत

किताबों में दब गई

कार्य के मायने बदले

Payroll पे भी अब पॉलिटिक्स होता

आय व्यय के समीकरण को

अनदेखा कर दिया मेंने

 

 

घर आई तो देखा

काम फैला हर कोने में

सफाई और समझ

दोनों ही नदारद हो गए

मैं चैन की नींद सोई।

 

'ना होना' उपहार बन गया अब तो,

बड़ी देर से जाना मैंने

 

नजरंदाज करना ही अब

अंदाज बन गया मेरा ।।


- Shalu Makhija

Sunday, 21 January 2024

मंजिल कहाँ रास्ता कहाँ…

 

मंजिल कहाँ रास्ता कहाँ…


सोचते  सोचते सोच धूमिल हो गयी ।

खोजते खोजते खोज ही बदल गयी ।

चलते चलते रस्ते बदल गए ।
चाहत को पाने की ज़िद में चाहत ही बदल गयी ।

ना वजूद अपना देखके शब्द मौन हो गए ।
आँसू भी अब शिकवा करना भूल गए ।

कठोर थे जो कभी वो फैसले बदल गए ।
अर्थ जानते तब तक मायने ही बदल गए ।

उम्मीद की दिखाई दिशा भी बदल गयी ।
कुछ हम बदले तो कुछ तुम भी तो बदल गए ।

प्यार था जिस मंज़िल से वो मंज़िल भी बदल गयी ।
किस से शिकायत करे नज़रिए ही बदल गए।

©Shalu Makhija

Sunday, 14 January 2024

नई शुरुआत

 

नई शुरुआत


एक नई शुरुआत करें 

एक नया संकल्प करें 

लोहड़ी है आज


चलो नया अध्याय लिखें 


वो बुरे दिन बीत गए

देर से ही सही,

वो काली रात खत्म हुई

चलो नई शुरुआत करें 


हंसी खुशी का माहौल हो

आदर सत्कार से स्वागत हो

प्यार जहां संस्कार हो

कला साहित्य से जहां प्यार हो

चलो नया संकल्प करें 


ऊंची हमारी उड़ान हो

सबके साथ दोस्ती हो

धागा और पतंग दोनों ही

इज्जत और प्यार से बंधे हो

चलो नई शुरुआत करें 


कुछ खट्टी मीठी मस्ती हो

दोस्तों की महफ़िल हो

गाने के संग संग,

शब्दों और धुन के रंग हो

हमारी ऐसी जुगलबंदी हो


लोहड़ी है आज

चलो नया अध्याय लिखें ।।

 ©Shalu Makhija


जीवन का haiku



आंखो में अग्नि
या हो अश्रु की धारा
यही ज़िंदगी

खुशी या गम
अनुभव असीम
छोटी ज़िंदगी


सुख ये जाता
दुख ना ठहरता
कोरी ज़िंदगी ।।









इतनी सी बात


इतनी सी बात


कोई दर्द गिन रहा 
कोई ज़ख्म लिख रहा 
कौन इन्हे समझाए
हंसी खुशी है अनमोल
बस इसी को तुम सहेजो 

कोई धन छिपा रहा
कोई दौलत दिखा रहा
कौन इन्हे समझाए
प्यार है सिर्फ कीमती
बस इसीको तुम पा लो

कोई अहंकार से इतरा रहा
कोई तवज्जो की लड़ाई में उलझा रहा
कौन इन्हे समझाए
विनम्रता ही जीवन है
सीख सको तो सीख लो

कोई सफलता के नशे में गुम 
तो कोई निष्फलता से हारा
कौन इन्हे समझाए
बन जाओगे तुम हर सांस के आभारी जो, 
जीत जाओगे यूं ही जग को

कटु विचार से भ्रमित होते 
और कटु बोली से होते वो जो हावी
कौन इन्हें समझाए
सम्मान तो आदर से ही मिलता
जान लो पहले देना इसको ।

कोई समृद्धि के शीर्ष पे बैठा
कोई निवृति को कदम गिनता
कौन इन्हे समझाए
"हरि बोल" में दोनो स्थित हैं
अर्जित यह ज्ञान अब कर लो।।

-Shalu Makhija


मौन



मौन 

मैं अविरत तुझे बाहर ढूंढ रही थी,
तुम भीतर में, मेरे यूं मुस्कुरा रहे थे ।

मैं क्षितिज को नाप ने चली थी,
तुम हवा बनके यूं ही सहज छू रहे थे ।


मैं परछाई को सच मान, भटक सी गई थी,
तुम खुशबू बनके सांसों में चल रहे थे ।

अब तो  उस सफ़र पे चल पड़ी हूं
जहां मौन की महिमा है

शब्द यहां आकर वजूद खो देते हैं
प्रेम भक्ति बन जाता है
घाव सरगम से लगते हैं
करुणा रोम रोम बसती है।

सफ़र की ना जाने कोई 
मंजिल भी है, 
बस मौन से मेरा परिचय करा दे, 
अब तो मुझे शंभो, तू तुझ में मिला दे ।।

- Shalu Makhija

Saturday, 13 January 2024

मैं कौन





"मैं कौन "

मैं कौन हूं, ढूंढने मैं चली थी
पाने से ज्यादा , खुद को खोने, मैं चली थी।।
लंबी सफर थी , जरा ध्यान से तुम सुनना, 
क्या पता तुम भी खुद को
हमराही जानो ।
मैं कौन हूं, ढूंढने में चली थी
पाने से ज्यादा , खुद को खोने में चली थी।।

मैं खुद को चमकते 
सूरज सी जानू
हवाओं के वेग से
ताल मिला लूं
उफानी नदी की 
रवानी में जानू
मैं बेखौफ आग की
ऊष्मा को सहेजूं

मैं ये चाहु, मैं वो भी चाहूं
इच्छा को मैं अपना हथियार जानू
जो मेरी गति से तू कदम मिलाये
तूफानी समंदर में नैया फसाए।
आसमान से ऊंची
उड़ान है ये मेरी
बिजली सी तपती
क्षण में ही जलाती ।

अहंकार के दरिया में
मैं हिचकोले लेती
गुरुर पे अपने यूं इतराती
मुझ में मेरा " मैं" बड़ा था
न जाना " दृष्टि" इतनी छोटी थी
बंद आंखों की छोटी समझ में,
मैं ने खुद को "विराट" जाना

***
फिर दिन बदले, उजाले ने आके
मेरा द्वार खटखटाया
जागी में जिस दिन
खुद को अबोध पाया
सतह से परे मन की आंखों से देखा,
सच का नया रूप सामने आया
जाना जब शिवा के 
ब्रह्मांड को मैंने
खुद को अंतरिक्ष की धूल सा पाया ।

सदियों का भार पलभर में पिघला
बिना अहम के अनायास ही
जाना 
पतझड़ में सूखे पत्ते सी मैं थी 
बारिश में गिरती, जल की
नन्ही सी बूंद मैं थी
महादेव के विराट रूप में
अंश मात्र मैं थी ।


भोर की औंस हो या
रातों की गहराई
फूलों की खुशबू हो या 
पेड़ों की छाया
सूरज की धूप हो या
जल की मिठास
हर धड़कते दिल में सिर्फ 
मेरे शिवा हैं 
ना खुद को शक्ति से जुदा
मैंने जाना 

कर्ता मैं थी, इच्छा तब भी तेरी थी
सिर्फ निमित मैं थी
सता हमेशा से तेरी ही थी
कल भी तू था, आज भी तू है
मैं कौन हूं जानने की अब जरूरत नहीं है
तू ही शिवा, बस अब चहुं ओर है।।

मैं कौन हूं, ढूंढने मैं चली थी
पाने से ज्यादा , खुद को खोने मैं चली थी।।


Friday, 12 January 2024

Hindi - The Dialogue with Hindi Language



The Dialogue with Hindi Language 


हिंदी तू सिर्फ बोली कहां है

विचारों की जलधारा

संवादों की आत्मीयता है

रिश्तों की घनिष्ठता है

तो मोक्ष का प्रथम द्वार है

 

प्यार महोब्वत में तू खीर बन जाती,

अपनो की शिकायत में मिर्ची सी लगती,

मनोस्थल की मरुभूमि में, चेतना का जल तू लाती है

आवेगों की आंधी को, सही दिशा तू दिखलाती है

 

हिंदी तू सिर्फ बोली कहां है

संवादों की आत्मीयता है

 

कभी तू English , कभी उर्दू से मिल जाती

तेरी दोस्ती तो हमें खूब सुहाती,

सनातन संस्कृत से तेरा, उद्घोष हुआ है

पंचामृत से परिपूर्ण है

 

हिंदी तू सिर्फ बोली कहां है

विचारों की जलधारा है

 

प्रेमचंद की कहानी में तू रचती

बच्चन जी की मधुशाला में, जिंदगी के रंग भर देती

गुलज़ार के गीतों में क्या खूब तू इठलाती है

शब्दों के तेरे इस खज़ाने से,

हर अभिव्यक्ति, इत्र बन जाती है।

 

हिंदी तू सिर्फ बोली कहां है

रिश्तों की घनिष्ठता है

 

खुशी में तू ठहाके बन जाती

दर्द में एक हमदर्द सी लगती,

या ये कहूं, दर्द में तुम  जगजीत की ग़ज़ल बन जाती,

दिल से दिल के रिश्तों में

तू ही तो हमराज़ है

परदेस में भी तेरे आने से,  पलभर में ही मेरा देस, मेरा भारत, बस जाता है।।

 

हिंदी तू सिर्फ बोली कहां है

विचारों की जलधारा है

-        ©Shalu Makhija