बचपन का सपना था
परवरिश या जिद्द थी
कुछ करके दिखाना
कुछ बनके दिखाना
कुछ खास बन ना
भीड़ में खो न जाना
यहां आ गई, अभी बहुत दूर जाना
ये ओहदा, ये इज्जत
ये रुतबा ये शहोरत
बस बढ़ाते जाना
कुछ विशेष बनना
प्रसिद्धि का प्रयास करना
उम्र यूं ही ढल गई
ये मुकाबला न बदला
कुछ ख़ास बन ने का
व्याख्यान हर दिन बदला ।
थोड़ा रुकी मैं
एकबार फिर से तलाशा
पलट के देखा मैंने
क्या खोया क्या पाया
सोचा क्यों न reverse gear लगाऊं,
ख़ास से "आम" बनने का सफर भी देख आऊं ।
बस फिर तो क्या था
गुरुत्व तो जैसे एक पल में उतरा
हर दिन जीने का
गणित जैसे कि बदला
बेफिक्र मस्ती
अहम का ना महत्व
वो क्या सोचे
मैं क्या सोचूं
इज्जत के ये अलग मापदंड
ना मेरी जिम्मेदारी
पंछी सी उड़ान
न कोई जल्दबाजी
छोटी सी खुशियां
रूबरू हो गई थी
जब से मैं "सुगम" हो गई थी।
संवाद में निच्छलता
पहनावे का न आडंबर
ना तुम्हे कोई दिखाए
न तुम्हे कुछ दिखाना
ना कोई प्रतियोगी
ना किसी मेडल की चाहत
कमाई में ही अब संतुष्टि हो गई थी
जब से मैं बस "निर्विशेष" हो गई थी।
दिल से जुड़े रिश्ते
हर किसी का आदर
न कोई ज्यादा
न कोई कम
बस बाहें फैलाए
सब का ही सत्कार
बनी उस पेड़ जैसी
जो झुकता फल के साथ
प्रसन्नता से मैं रूबरू हो गई थी
जब से मैं " एकरूप" हो गई थी।
सुबह की वो धूप
शाम का ये ढलना
बारिश की ये बौछारें
बैकयार्ड में हर जीव का यूं पलना,
तेरा मुस्कराना
दिल से हाथ मिलाना
हर सांस का आना
मुझे प्रकाशित करके यूं जाना
हर पल मैं अनुग्रहित हो गई थी
जब से मैं "खास"से "आम" हो गई थी।
Thanks
Shalu Makhija
Dt Feb 3, 2023
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