"मैं कौन "
मैं कौन हूं, ढूंढने मैं चली थी
पाने से ज्यादा , खुद को खोने, मैं चली थी।।
लंबी सफर थी , जरा ध्यान से तुम सुनना,
क्या पता तुम भी खुद को
हमराही जानो ।
मैं कौन हूं, ढूंढने में चली थी
पाने से ज्यादा , खुद को खोने में चली थी।।
मैं खुद को चमकते
सूरज सी जानू
हवाओं के वेग से
ताल मिला लूं
उफानी नदी की
रवानी में जानू
मैं बेखौफ आग की
ऊष्मा को सहेजूं
मैं ये चाहु, मैं वो भी चाहूं
इच्छा को मैं अपना हथियार जानू
जो मेरी गति से तू कदम मिलाये
तूफानी समंदर में नैया फसाए।
आसमान से ऊंची
उड़ान है ये मेरी
बिजली सी तपती
क्षण में ही जलाती ।
अहंकार के दरिया में
मैं हिचकोले लेती
गुरुर पे अपने यूं इतराती
मुझ में मेरा " मैं" बड़ा था
न जाना " दृष्टि" इतनी छोटी थी
बंद आंखों की छोटी समझ में,
मैं ने खुद को "विराट" जाना
***
फिर दिन बदले, उजाले ने आके
मेरा द्वार खटखटाया
जागी में जिस दिन
खुद को अबोध पाया
सतह से परे मन की आंखों से देखा,
सच का नया रूप सामने आया
जाना जब शिवा के
ब्रह्मांड को मैंने
खुद को अंतरिक्ष की धूल सा पाया ।
सदियों का भार पलभर में पिघला
बिना अहम के अनायास ही
जाना
पतझड़ में सूखे पत्ते सी मैं थी
बारिश में गिरती, जल की
नन्ही सी बूंद मैं थी
महादेव के विराट रूप में
अंश मात्र मैं थी ।
भोर की औंस हो या
रातों की गहराई
फूलों की खुशबू हो या
पेड़ों की छाया
सूरज की धूप हो या
जल की मिठास
हर धड़कते दिल में सिर्फ
मेरे शिवा हैं
ना खुद को शक्ति से जुदा
मैंने जाना
कर्ता मैं थी, इच्छा तब भी तेरी थी
सिर्फ निमित मैं थी
सता हमेशा से तेरी ही थी
कल भी तू था, आज भी तू है
मैं कौन हूं जानने की अब जरूरत नहीं है
तू ही शिवा, बस अब चहुं ओर है।।
मैं कौन हूं, ढूंढने मैं चली थी
पाने से ज्यादा , खुद को खोने मैं चली थी।।
No comments:
Post a Comment