मंजिल कहाँ रास्ता कहाँ…
सोचते सोचते सोच धूमिल हो गयी ।
खोजते खोजते खोज ही बदल गयी ।
चलते चलते रस्ते बदल गए ।
चाहत को पाने की ज़िद में चाहत ही बदल गयी ।
ना वजूद अपना देखके शब्द मौन हो गए ।
आँसू भी अब शिकवा करना भूल गए ।
कठोर थे जो कभी वो फैसले बदल गए ।
अर्थ जानते तब तक मायने ही बदल गए ।
उम्मीद की दिखाई दिशा भी बदल गयी ।
कुछ हम बदले तो कुछ तुम भी तो बदल गए ।
प्यार था जिस मंज़िल से वो मंज़िल भी बदल गयी ।
किस से शिकायत करे नज़रिए ही बदल गए।
©Shalu Makhija
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