The Dialogue with Hindi Language
हिंदी तू सिर्फ बोली कहां है
विचारों की जलधारा ह
संवादों की आत्मीयता है
रिश्तों की घनिष्ठता है
तो मोक्ष का प्रथम द्वार है ।
प्यार महोब्वत में तू खीर बन जाती,
अपनो की शिकायत में मिर्ची सी लगती,
मनोस्थल की मरुभूमि में, चेतना का जल तू लाती है
आवेगों की आंधी को, सही दिशा तू दिखलाती है
हिंदी तू सिर्फ बोली कहां है
संवादों की आत्मीयता है ।
कभी तू English , कभी उर्दू से मिल जाती
तेरी दोस्ती तो हमें खूब सुहाती,
सनातन संस्कृत से तेरा, उद्घोष हुआ है
पंचामृत से परिपूर्ण है ।
हिंदी तू सिर्फ बोली कहां है
विचारों की जलधारा है ।
प्रेमचंद की कहानी में तू रचती
बच्चन जी की मधुशाला में, जिंदगी के रंग भर देती
गुलज़ार के गीतों में क्या खूब तू इठलाती है
शब्दों के तेरे इस खज़ाने से,
हर अभिव्यक्ति, इत्र बन जाती है।
हिंदी तू सिर्फ बोली कहां है
रिश्तों की घनिष्ठता है ।
खुशी में तू ठहाके बन जाती
दर्द में एक हमदर्द सी लगती,
या ये कहूं, दर्द में तुम जगजीत की ग़ज़ल बन जाती,
दिल से दिल के रिश्तों में
तू ही तो हमराज़ है
परदेस में भी तेरे आने से, पलभर में ही मेरा देस, मेरा भारत, बस जाता है।।
हिंदी तू सिर्फ बोली कहां है
विचारों की जलधारा है
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©Shalu Makhija
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