आओ , हिन्दू धर्म पे आज बात करें,
धरोहर से वर्तमान को प्रकाशित करें ।
कैलाश के शिखरों में बसता
गंगा के प्रवेग में बहता
ओमकार की ध्वनि में रहता
सत्य सनातन ये समझाता
धर्म हमारा 'करुणा' कहलाता ।
चिता की राख से खूब संवरता
योगी की विरक्ति में सजता
वैदिक ज्ञान से मार्ग दिखाता
प्राणायाम से संगीत बनाता
धर्म हमारा 'योगा' कहलाता ।
पिता के कर्मठ हाथो में पलता
माँ की आस्था में यूं निखरता
मदद को उठे हर उस हाथ में
आती जाती हर एक साँस में
धर्म मेरा 'मानवता' सिखाता ।
रीति रिवाजों से ऊँचा ये
अर्थ अनुवादों से परे ये
अहंकार पे मंद मुस्काए
कर्म योग के पथ पे चलता
भक्ति और भिक्षा में बसता
धर्म हमारा 'सांख्य योग' समझाता ।
जो आया है , उसे जाना है
जो आज तुम्हारा है ,
वो कल किसी ओर का होना है
पहचानो उस ऊर्जा को खुद में,
जो हरदम अविरत बहती है
जान जो लोगे तुम उस
परम स्वरूप को,
तुम भी 'ईश्वर' बन जाओगे ।
पुकारो माँ को किसी भी नाम से,
क्या रूप उसका बदलता है
रचयिता ने रचना की है,
ईश्वर तो हर कण में बसता है।
सत्य सनातन ये समझाता,
धर्म हमारा 'निर्वाणा' कहलाता ।।
© Shalu Makhija
Nov 22, 2022
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