Sunday, 21 January 2024

मंजिल कहाँ रास्ता कहाँ…

 

मंजिल कहाँ रास्ता कहाँ…


सोचते  सोचते सोच धूमिल हो गयी ।

खोजते खोजते खोज ही बदल गयी ।

चलते चलते रस्ते बदल गए ।
चाहत को पाने की ज़िद में चाहत ही बदल गयी ।

ना वजूद अपना देखके शब्द मौन हो गए ।
आँसू भी अब शिकवा करना भूल गए ।

कठोर थे जो कभी वो फैसले बदल गए ।
अर्थ जानते तब तक मायने ही बदल गए ।

उम्मीद की दिखाई दिशा भी बदल गयी ।
कुछ हम बदले तो कुछ तुम भी तो बदल गए ।

प्यार था जिस मंज़िल से वो मंज़िल भी बदल गयी ।
किस से शिकायत करे नज़रिए ही बदल गए।

©Shalu Makhija